Hathi Aur Chatur Khargosh-Panchtantra

हाथी और चतुर खरगोश-पंचतंत्र-The Elephants And Hares Panchatantra Story In Hindi



एक वन में ’चतुर्दन्त’ नाम का महाकाय हाथी रहता था। वह अपने हाथीदल का मुखिया था। बरसों तक सूखा पड़ने के कारण वहा के सब झील, तलैया, ताल सूख गये, और वृक्ष मुरझा गए। सब हाथियों ने मिलकर अपने गजराज चतुर्दन्त को कहा कि हमारे बच्चे भूख-प्यास से मर गए, जो शेष हैं मरने वाले हैं। इसलिये जल्दी ही किसी बड़े तालाब की खोज की जाय।

बहुत देर सोचने के बाद चतुर्दन्त ने कहा----"मुझे एक तालाब याद आया है। वह पातालगङगा के जल से सदा भरा रहता है। चलो, वहीं चलें।" पाँच रात की लम्बी यात्रा के बाद सब हाथी वहाँ पहुँचे। तालाब में पानी था। दिन भर पानी में खेलने के बाद हाथियों का दल शाम को बाहर निकला । तालाब के चारों ओर खरगोशों के अनगिनत बिल थे । उन बिलों से जमीन पोली हो गई थी। हाथियों के पैरों से वे सब बिल टूट-फूट गए। बहुत से खरगोश भी हाथियों के पैरों से कुचले गये। किसी की गर्दन टूट गई, किसी का पैर टूट गया। बहुत से मर भी गये।

हाथियों के वापस चले जाने के बाद उन बिलों में रहने वाले क्षत-विक्षत, लहू-लुहान खरगोशों ने मिल कर एक बैठक की। उस में स्वर्गवासी खरगोशों की स्मृति में दुःख प्रगट किया गया तथा भविष्य के संकट का उपाय सोचा गया। उन्होंने सोचा----आस-पास अन्यत्र कहीं जल न होने के कारण ये हाथी अब हर रोज इसी तालाब में आया करेंगे और उनके बिलों को अपने पैरों से रौंदा करेंगे। इस प्रकार दो चार दिनों में ही सब खरगोशों का वंशनाश हो जायगा। हाथी का स्पर्श इतना ही भयंकर है जितना साँप का सूँघना, राजा का हँसना और मानिनी का मान।

इस संकट से बचाने का उपाय सोचते-सोचते एक ने सुझाव रखा----"हमें अब इस स्थान को छोड़ कर अन्य देश में चले जाना चाहिए। यह परित्याग ही सर्वश्रेष्ठ नीति है। एक का परित्याग परिवार के लिये, परिवार का गाँव के लिये, गाँव का शहर के लिये और सम्पूर्ण पृथ्वी का परित्याग अपनी रक्षा के लिए करना पड़े तो भी कर देना चाहिये।"

किन्तु, दूसरे खरगोशों ने कहा----"हम तो अपने पिता-पितामह की भूमि को न छोड़ेंगे।"

कुछ ने उपाय सुझाया कि खरगोशों की ओर से एक चतुर दूत हाथियों के दलपति के पास भेजा जाय । वह उससे यह कहे कि चन्द्रमा में जो खरगोश बैठा है उसने हाथियों को इस तालाब में आने से मना किया है । संभव है चन्द्रमा स्थित खरगोश की बात को वह मान जाय।"

बहुत विचार के बाद लम्बकर्ण नाम के खरगोश को दूत बना कर हाथियों के पास भेजा गया। लम्बकर्ण भी तालाब के रास्ते में एक ऊँचे टीले पर बैठ गया और जब हाथियों का झुण्ड वहाँ आया तो वह बोला----"यह तालाब चाँद का अपना तालाब है। यह मत आया करो।"

गजराज----"तू कौन है ?" 

लम्बकर्ण----"मैं चाँद में रहने वाला खरगोश हूँ। भगवान् चन्द्र ने मुझे तुम्हारे पास यह कहने के लिये भेजा है कि इस तालाब में तुम मत आया करो।"

गजराज ने कहा----"जिस भगवान् चन्द्र का तुम सन्देश लाए हो वह इस समय कहाँ है ?"

लम्बकर्ण---"इस समय वह तालाब में हैं। कल तुम ने खरगोशों के बिलों का नाश कर दिया था। आज वे खरगोशों की विनति सुनकर यहाँ आये हैं। उन्हीं ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।"

गजराज----"ऐसा ही है तो मुझे उनके दर्शन करा दो। मैं उन्हें प्रणाम करके वापस चला जाऊँगा।"

लम्बकर्ण अकेले गजराज को लेकर तालाब के किनारे पर ले गया। तालाब में चाँद की छाया पड़ रही थी। गजराज ने उसे ही चाँद समझ कर प्रणाम किया और लौट पड़ा। उस दिन के बाद कभी हाथियों का दल तालाब के किनारे नहीं आया।

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बड़े नाम की महिमा

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