पंचतंत्र की कहानियाँ
The Stories Of Panchatantra In Hindi
परिचय व पंचतंत्र के लेखक
पंचतंत्र एक प्रसिद्ध संस्कृत नीतिपुस्तक है। संस्कृत नीतिपुस्तक में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। इस ग्रंथ के रचयिता पं0 विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई तब उनकी उम्र लगभग 80 साल की थी। वे दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस पास निर्धारित की गई है। आज विशव की 50 से भी अधिक भाषाओ में इसका अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। इतनी भाषाओं में इन कहानियों का अनुवाद प्रकाशित होना ही इसकी लोकप्रियता का परिचायक है जो आज भी पुरे भारत में प्रसिद्ध है।
पंचतंत्र की रचना
महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति के तीन मूर्ख पुत्र थे जो राजनीति एवं नेतृत्व गुण सीखने में असफल रहे।विष्णु शर्मा राजनिति तथा नीतिशास्त्र सहित सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। विष्णु शर्मा को दरबार में बुलाकर घोषणा की कि यदि वे उसके पुत्रों को कुशल राजसी प्रशासक बनाने में सफल होते हैं तो वह उन्हें सौ गॉव तथा बहुत सा स्वर्ण देंगें।
विष्णु शर्मा हॅसे और कहे ” हे राजन् मै अपनी विद्या को बेचता नहीं, मुझे किसी उपहार की इच्छा या लालच नही है। “ आपने मुझे विशेष सम्मान सहित बुलाया है, इसलिये मैं आपके पुत्रों को छः माह के भीतर कुशल प्रशासन बनाने की शपथ लेता हॅू। राजा ने हर्शपूर्वक तीनों राजकुमारों की जिम्मदारी विष्णु शर्मा को दे दी।
विष्णु शर्मा ने उन्हें शिक्षित करने हेतु कुछ कहानियों की रचना की जिनके माध्यम से वे उन्हें नीति सिखाया करते थे। शीघ ही राजकुमारों ने इसमें रूचि लेना आरम्भ कर दिया तथा नीति सीखने में सफलता प्राप्त की।
राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को पंचतंत्र कहानी संग्रह के रूप में संकलित किया। इन कहानियों का संकलन पॉच समूहों में पंचतंत्र के नाम से कोई 2000 साल पहले (ईसा-पूर्व दूसरी और तीसरी शताब्दियों के मध्य) बना।
पंचतंत्र की कई कहानियों में मनुश्य-पात्रों के आलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवानें की कोशिश की गई है।
पंचतंत्र को पॉच तंत्रों अथवा भागों में बॉटा गया है :-
1. मित्रभेद - मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव।
2. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति - मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ।
3. काकेलूकीयम् - कौवे एवं उल्लुओं की कथा।
4. लब्धप्रणाष - हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना।
5. अपरीक्षित कारक - जिसको परखा नही गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें या हड़बड़ी में कदम ना अठायें।
मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतो से परिचित कराती ये कहानियॉ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश भी करती है।
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