Stree-Bhakt Raja-Panchtantra
स्त्री-भक्त राजा-पंचतंत्र-King Who Loved His Wife Panchatantra Story Hindi
एक राज्य में अतुलबल पराक्रमी राजा नन्द राज्य करता था। उसकी वीरता चारों दिशाओं में प्रसिद्ध थी। आसपास के सब राजा उसकी वन्दना करते थे। उसका राज्य समुद्र-तट तक फैला हुआ था। उसका मन्त्री वररुचि भी बड़ा विद्वान् और सब शास्त्रों में पारंगत था। उसकी पत्नी का स्वभाव बड़ा तीखा था। एक दिन वह प्रणय-कलह में ही ऐसी रुठ गई कि अनेक प्रकार से मनाने पर भी न मानी। तब, वररुचि ने उससे पूछा़ ----"प्रिये ! तेरी प्रसन्नता के लिये मैं सब कुछ़ करने को तैयार हूँ। जो तू आदेश करेगी, वही करुँगा।" पत्नी ने कहा ----"अच्छी़ बात है। मेरा आदेश है कि तू अपना सिर मुंडाकर मेरे पैरों पर गिरकर मुझे मना, तब मैं मानूंगी।" वररुचि ने वैसा ही किया। तब वह प्रसन्न हो गई।
उसी दिन राजा नन्द की स्त्री भी रुठ गई। नन्द ने भी कहा----"प्रिये ! तेरी अप्रसन्नता मेरी मृत्यु है। तेरी प्रसन्नता के लिये मैं सब कुछ़ करने के लिये तैयार हूँ। तू आदेश कर, मैं उसका पालन करुंगा।" नन्दपत्नी बोली----"मैं चाहती हूँ कि तेरे मुख में लगाम डालकर तुझपर सवार हो जाऊँ, और तू घोड़े की तरह हिनहिनाता हुआ दौडे़। अपनी इस इच्छा़ के पूरी होने पर ही मैं प्रसन्न होऊँगी।" राजा ने भी उसकी इच्छा़ पूरी कर दी।
दूसरे दिन सुबह राज-दरबार में जब वररुचि आया तो राजा ने पूछा----"मन्त्री ! किस पुण्यकाल में तूने अपना सिर मुंडाया है?"
वररुचि ने उत्तर दिया----"राजन् ! मैंने उस पुण्य काल में अपना सिर मुँडाया है, जिस काल में पुरुष मुख में लगाम डालकर हिनहिनाते हुए दौड़ता हैं।"
राजा यह सुनकर बड़ा लज्जित हुआ।
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॥चौथा तन्त्र समाप्त॥
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