Brahmani Aur Nevla-Panchtantra

ब्राह्मणी और नेवला-पंचतंत्र - The Brahmani & The Mongoose Story In Hindi - Panchatantra


एक बार देव शर्मा नाम के ब्राह्मण के घर जिस दिन पुत्र का जन्म हुआ उसी दिन उसके घर में रहने वाली नकुली ने भी एक नेवले को जन्म दिया। देव शर्मा की पत्‍नी बहुत दयालु स्वभाव की स्त्री थी। उसने उस छो़टे नेवले को भी अपने पुत्र के समान ही पाल-पोसा और बड़ा किया। वह नेवला सदा उसके पुत्र के साथ खेलता था। दोनों में बड़ा प्रेम था। देव शर्मा की पत्‍नी भी दोनों के प्रेम को देखकर प्रसन्न थी। किन्तु उसके मन में यह शंका हमेशा रहती थी कि कभी यह नेवला उसके पुत्र को काट ना खाये। पशु के बुद्धि नहीं होती, मूर्खतावश वह कोई भी अनिष्ट कर सकता है।

एक दिन उसकी इस आशंका का बुरा परिणाम निकल आया। उस दिन देवशर्मा की पत्‍नी अपने पुत्र को एक वृक्ष की छा़या में सुलाकर स्वयं पास के जलाशय से पानी भरने गई थी। जाते हुए वह अपने पति देवशर्मा से यह कह गई थी कि वहीं ठहर कर वह पुत्र की देख-रेख करे, कहीं ऐसा न हो कि नेवला उसे काट खाये। पत्‍नी के जाने के बाद देवशर्मा ने सोचा, ’कि नेवले और बच्चे में गहरी मैत्री है, नेवला बच्चे को हानि नहीं पहुँचायेगा।’ यह सोचकर वह अपने सोये हुए बच्चे और नेवले को वृक्ष की छा़या में एक साथ छो़ड़कर स्वयं भिक्षा के लोभ से कहीं चल पड़ा।

दैववश उसी समय एक काला नाग पास के बिल से बाहर निकला। नेवले ने उसे देख लिया। और उसे डर हुआ कि कहीं यह उसके मित्र को डस ना ले, इसलिये वह काले नाग पर टूट पड़ा और स्वयं बहुत क्षत-विक्षत होते हुए भी उसने उस काले नाग के खंड-खंड कर दिये।

सांप को मारने के बाद वह उसी दिशा में चल पड़ा, जिधर देवशर्मा की पत्‍नी पानी भरने गई थी। उसने सोचा कि वह उसकी वीरता की प्रशंसा करेगी, किन्तु हुआ इसके विपरीत। उसकी खून से सनी देह को देखकर ब्राह्मण पत्‍नी का मन उन्हीं पुरानी आशंकाओं से भर गया कि कहीं इसने उसके पुत्र की हत्या ना कर दी हो। यह विचार आते ही उसने क्रोध से सिर पर उठाये घड़े को नेवले पर फेंक दिया। छो़टा सा नेवला जल से भारी घड़े की चोट खाकर वहीं मर गया। ब्राह्मण-पत्‍नी वहाँ से भागती हुई वृक्ष के नीचे पहुँची। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उसका पुत्र बड़ी शान्ति से सो रहा है, और उससे कुछ दूरी पर ही एक काले साँप का शरीर खँड-खँड पड़ा हुआ है। तब उसे उस नेवले की वीरता का ज्ञान हुआ। पश्चात्ताप से उसकी छा़ती फटने लगी।

इसी बीच ब्राह्मण देवशर्मा भी वहाँ आ गया। वहाँ आकर उसने अपनी पत्‍नी को विलाप करते देखा तो उसका मन भी सशंकित हो गया। किन्तु पुत्र को कुशलपूर्वक सोते देख उसका मन शान्त हुआ। पत्‍नी ने अपने पति देवशर्मा को रोते-रोते नेवले की मृत्यु का समाचार सुनाया और कहा----"मैं तुम्हें यहीं ठहर कर बच्चे की देख-भाल के लिये कह गई थी। तुमने भिक्षा के लोभ से मेरा कहना नहीं माना। इसी से यह परिणाम हुआ।



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बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय
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