Brahman Ka Sapna-Panchtantra
ब्राह्मण का सपना-पंचतंत्र-The Brahmin’s Dream Panchatantra Story In Hindi
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एक नगर में एक कंजूस ब्राह्मण रहता था। उसने भिक्षा से प्राप्त सत्तुओं में से थोड़े से खाकर शेष से एक घड़े भर लिया था। उस घड़े को उसने रस्सी से बाँधकर खूंटी पर लटका दिया और उसके नीचे पास ही खटिया डालकर उसपर लेटे-लेटे विचित्र सपने देखने लगा, और कल्पना के हवाई घोड़े दौड़ाने लगा।
उसने सोचा कि जब देश में अकाल पड़ेगा तो इन सत्तुओं का मूल्य १०० रुपये हो जायगा। उन सौ रुपयों से मैं दो बकरियां लूँगा। छः महीने में उन दो बकरियों से कई बकरियाँ बन जाएंगी। उन्हें बेचकर एक गाय लूँगा। गौओं के बाद भैंसे लूंगा और फिर घोड़े ले लूँगा।
घोड़ों को महंगे दामों में बेच मेरे पास बहुत सा सोना हो जायगा। सोना बेचकर मैं बहुत बड़ा घर बनाऊँगा। मेरी सम्पत्ति को देखकर कोई भी ब्राह्मण अपनी सुरुपवती कन्या का विवाह मुझसे कर देगा। वह मेरी पत्नी बनेगी। उससे जो पुत्र होगा उसका नाम मैं सोमशर्मा रखूंगा।
जब वह घुटनों के बल चलना सीख जायेगा तो मैं पुस्तक लेकर घुड़़शाला के पीछे़ की दीवार पर बैठा हुआ उसकी बाल-लीलायें देखूंगा। उसके बाद सोमशर्मा मुझे देखकर मां की गोद से उतरेगा और मेरी ओर आयेगा तो मैं उसकी मां को क्रोध से कहूँगा---"अपने बच्चे को संभाल।"
वह गृह-कार्य में व्यग्र होगी, इसलिये मेरा वचन न सुन सकेगी। तब मैं उठकर उसे पैर की ठोकर से मारुंगा। यह सोचते ही उसका पैर ठोकर मारने के लिये ऊपर उठा। वह ठोकर सत्तु-भरे घड़े को लगी। घड़ा कंजूस ब्राह्मण के स्वप्न के साथ ही चकनाचूर हो गया।
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शेख़चिल्ली ना बनो
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