जिद पर अड़े बच्चे को समझाना बच्चों का खेल नहीं। ~ अकबर और बीरबल की कहानियाँ!
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जब बादशाह ने देरी का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, 'मैं क्या करता हुजूर! मेरे बच्चे आज जोर-जोर से रो कर कहने लगे कि दरबार में ना जाऊँ।
किसी तरह उन्हें बहुत मुश्किल से समझा पाया कि मेरा दरबार में हाजिर होना कितना जरूरी है। इसी में मुझे काफी समय लग गया और इसलिए मुझे आने में देर हो गई।’
बादशाह को सक लगा कि बीरबल बहानेबाजी कर रहे हैं।
बीरबल के इस जवाब से बादशाह को तसल्ली नहीं हुई। वे बोले, 'मैं तुमसे सहमत नहीं हूं। किसी भी बच्चे को समझाना इतना मुश्किल नहीं जितना तुमने बताया। इसमें इतनी देर तो लग ही नहीं सकती।’
बीरबल हंसते हुए बोले, 'हुजूर! बच्चों पर गुस्सा करना या डपटना तो बहुत सरल है। लेकिन किसी बात को विस्तार से समझा पाना बेहद कठिन।’
बादशाह अकबर बोले, 'मूर्खों जैसी बात मत करो। मेरे पास कोई भी बच्चा लेकर आओ। मैं तुम्हें दिखाता हूं कि कितना आसान है यह काम।’
'ठीक है, जहांपनाह!’ बीरबल बोले, 'मैं खुद ही बच्चा बन जाता हूं और ठीक वैसा ही व्यवहार करता हूं।
तब आप एक पिता की भांति मुझे संतुष्ट करके दिखाएं।’
फिर बीरबल ने छोटे बच्चे की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया। उन्होंने तरह-तरह के मुंह बनाकर बादशाह अकबर को चिढ़ाया और किसी छोटे बच्चे की तरह दरबार में यहां-वहां उछलने-कूदने लगे।
उन्होंने अपनी पगड़ी जमीन पर फेंक दी। फिर वे जाकर बादशाह अकबर की गोद में बैठ गए और उनकी मूछों से छेड़छाड़ करने लगे।
बादशाह कहते ही रह गए, 'नहीं…नहीं मेरे बच्चे! ऐसा मत करो। तुम तो अच्छे बच्चे हो ना।’ यह सुनकर बीरबल ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।
तब बादशाह अकबर ने कुछ मिठाइयां लाने का आदेश दिया, लेकिन बीरबल फिर भी जोर-जोर से चिल्लाते ही रहे।
अब बादशाह परेशान हो गए, लेकिन उन्होंने धैर्य बनाए रखा।
वह बोले, 'बेटा! खिलौनों से खेलोगे? देखो कितने सुंदर खिलौने हैं।’
बीरबल रोते हुए बोले, 'नहीं, मैं तो गन्ना खाऊंगा।’
बादशाह अकबर धीरे से मुस्कुराए और गन्ना लाने का आदेश दिया।
थोड़ी ही देर में एक सैनिक कुछ गन्ने लेकर आ गया। लेकिन बीरबल का रोना अब भी नहीं थमा। और वे बोले, 'मुझे बड़ा गन्ना नहीं चाहिए, छोटे-छोटे टुकड़े में कटा गन्ना दो।’
बादशाह अकबर ने एक सैनिक को बुलाकर एक गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े करने को कहा। यह देखकर बीरबल और जोर से रोते हुए बोले , 'नहीं, सैनिक गन्ना नहीं काटेगा। आप खुद काटें इसे।’
अब बादशाह का मिज़ाज बिगड़ने लग गया। लेकिन उनके पास गन्ना काटने के अलावा और कोई चारा ना था। और करते भी क्या? वह खुद अपने ही बिछाए जाल में फँस गए थे।
गन्ने के टुकड़े करने के बाद उन्हें बीरबल के सामने रखते हुए बोले, 'लो इसे खा लो बेटा।’
अब बीरबल ने बच्चे की भांति मचलते हुए कहा, 'नहीं मैं तो एक पूरा गन्ना ही खाऊंगा।’
बादशाह ने एक साबुत गन्ना उठाया और बीरबल को देते हुए बोले, 'लो एक पूरा गन्ना और रोना बंद करो।’
लेकिन बीरबल रोता हुआ बोला, 'नहीं, मुझे तो इन छोटे टुकड़ों से ही साबुत गन्ना बनाकर दो।’
'कैसी अजब बात करते हो तुम! यह भला कैसे संभव है?’ बादशाह के स्वर में क्रोध भरा था।
लेकिन बीरबल रोते ही रहे। अब बादशाह का धैर्य जवाब दे गया और बोले, 'यदि तुमने रोना बंद नहीं किया तो मार पड़ेगी अब।’
बच्चे का अभिनय करता बीरबल अब उठ खड़ा हुआ और हंसता हुआ बोला, 'नहीं…नहीं! मुझे मत मारो हुजूर! अब आपको पता चला कि किसी बच्चे की बेतुकी जिदों को शांत करना कितना मुश्किल काम है?’
बीरबल की बात से अकबर सहमत थे, और बोले, 'हां ठीक कहते हो। रोते-चिल्लाते ज़िद पर अड़े बच्चे को समझाना बच्चों का खेल नहीं।’
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